भारत में उगनेवाली इस घास की ओर दुनिया का ध्यान 1987 में विश्वबैंक के दो कृषि वैज्ञानिकों के जरिए गया।
इसकी काफी रोचक कहानी है। विश्वबैंक के कृषि वैज्ञानिक रिचर्ड ग्रिमशॉ और
जॉन ग्रीनफिल्ड मृदा क्षरण ( Soil erosion ) पर रोक के उपाय की तलाश में
थे। इसी दौरान उनका भारत में आना हुआ और उन्होंने कर्नाटक के एक गांव में
देखा कि वहां के किसान सदियों से मृदा क्षरण पर नियंत्रण के लिए वेटीवर
उगाते आए हैं। उन्होंने किसानों से ही जाना कि इसकी वजह से उनके गांवों में
जल संरक्षण भी होता था तथा कुओं को जलस्तर ऊपर बना रहता था। उसके बाद से
विश्वबैंक के प्रयासों से दुनिया भर में वेटीवर को पर्यावरण संरक्षण के उपयोगी साधन के रूप में काफी लोकप्रियता मिली है।
हालांकि भारतीय कृषि व पर्यावरण विभागों व इनसे संबद्ध वैज्ञानिकों ने
इसमें खासी रुचि नहीं दिखायी। नतीजा यह है कि भारत में लोकप्रियता की बात
तो दूर, इस पौधे का चलन कम होने लगा है।आप भले एयरकंडीशंड घरों में रहते
हों, लेकिन गर्मियों में खस की टट्टियों की याद जरूर आती होगी। इस बात को
अधिक से अधिक लोगों को जानने की जरूरत है कि इस वनस्पति की उपयोगिता आपके
कमरों के तापमान को नियंत्रित रखने में ही नहीं, पर्यावरण को अनुकूलित रखने में भी है इस घास की ऊपर की पत्तियों को काट
दिया जाता है और नीचे की जड़ से खस के परदे तैयार किए जाते हैं। बताते हैं
कि इसके करीब 75 प्रभेद हैं, जिनमें भारत में वेटीवेरिया जाईजेनियोडीज
(Vetiveria zizanioides) अधिक उगाया जाता है। बुखार हो तो इसकी जड़ का
काढ़ा पीयें . उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा . हल्का
बुखार हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट न रहा हो तो यह काढ़ा
बहुत लाभदायक रहता है . पित्त , एसिडिटी या घबराहट हो तो इसकी जड़ कूटकर
काढ़ा बनाएं और मिश्री मिलाकर पीयें . चर्म रोग या एक्जीमा या एलर्जी हो तो
इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें . दिल संबंधी कोई परेशानी हो तो इसकी जड़ में मुनक्का मिलाकर काढ़ा बनाकर मसलकर छानकर पीयें .इससे हारमोंस भी ठीक रहेंगे और धड़कन की गति भी ठीक रहेगी . किडनी की परेशानी में खस और गिलोय
का काढ़ा सवेरे सवेरे पीयें . हाय बी. पी . हो या एंजाइना की समस्या हो तो
इसकी जड़ और अर्जुन की छाल का काढ़ा पीयें . प्यास बहुत अधिक लगती हो तो
इसकी जड़ कूटकर पानी में ड़ाल दें . बाद में छानकर पानी पी लें . यह शीतल अवश्य है ; परन्तु इसे लेने से जोड़ों का दर्द बढ़ता नहीं है . खस का इस्तेमाल सिर्फ ठंडक के लिए ही नहीं होता, आयुर्वेद जैसी परंपरागत चिकित्सा प्रणालियों में औषधि के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा इससे तेल बनता है और इत्र जैसी खुशबूदार चीजों में भी इसका उपयोग होता है। खस का अत्तर. इसका एक तोला आप 25 रुपये से 1000 रुपये तकका खरीद सकते हैं. इसे भी शरीर पर सुबह लगानेपर शाम तक लोग पूछते रहते हैं कि यहभीनी भीनी सुगंध कहां से आ रही है.दो तोला खस साल भर काम आ जाता है. खस का अत्तर लगाने वालो को सकून देता है,मानसिक तौर पर ठंडाई की अनुभूति देता है, और मन को स्वस्थ रखता है. इसके
मनोवैज्ञानिक कारण हैं, लेकिन औषधि स्तर पर भी कई कारक हैं. अफसोस यहहै कि कद्रदानों के अभाव में खास का अत्तर लगभग लुप्त सा हो गया है. अच्छे किस्म का अत्तर खस के अच्छेगुणों वाले जडों से बनाया जाता है औरउसको हलके चंदन या गुलाब के अत्तर का पुटदिया जाता है. इससे अत्तर का तीखापन कमहोकर भीना भीना सा गंध देने लगता है. अत्तरअच्छी किस्म का हो तो आप के आसपास के लोगों को यह महक दिन भरमिलती रहेगी जबको आप को अगले स्नान केसमय तक यह महक मिलती रहेगी. उम्दा किस्म का अत्तर खरीदें और प्रयोग करें.बस स्नान करने के बाद बहुत ही हल्के से अपने छाती, गर्दन, और हाथों पर लगा
लें. अत्तर की कम से कम मात्रा का प्रयोग पर्याप्त रहता है.
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