पानी --
वैसे तो हम सब जानते है की "भोजनान्ते विषम वारि".
पर यह अर्ध श्लोक है . पूरा श्लोक इस प्रकार है-
अजीर्णे भेषजं वारि, जीर्णे वारि बलप्रदम् । भोजने चामृतं वारि, भोजनान्ते विषप्रदम् ॥--वृद्ध चाणक्य
अजीर्ण अर्थात अपच में पानी भेषज यानी औषधि है.वारि अर्थात पानी.
जीर्णे अर्थात जब पाचन सही हो तो यह बल और पोषण प्रदान करता है.
भोजने अर्थात भोजन करते समय घूंट घूंट पानी पीना अमृत के समान है. अर्थात यह भूख बढाता है.
भोजनान्ते यानी भोजन के अंत में पानी पीना विष समान है. अर्थात इसका प्रभाव बहुत बुरा होता है.
अपचन में औषधि -
फ़ूड पाइजनिंग या डायरिया आदि में पानी पिटे रहना ही औषधि है. जैसे निम्बू शरबत , पतला छाछ , नारियल पानी आदि. इससे विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते है.
उपवास में भी पानी लेते रहने से शरीर पर बहुत अच्छा प्रभाव होता है .
खाना भोजन के मध्य में भूख बढाने वाला पानी -
भोजन करते समय किसी पेय या पानी के घूंट लेना जठराग्नि में वृद्धि करता है. जब दो अलग अलग रस के खाद्य पदार्थ हो तो मध्य में पानी अवश्य पियें. इससे भोजन रुखा सूखा भी नहीं लगता और खाने का पूर्ण आनंद प्राप्त होता है.
पर ध्यान रहे की ये पानी या पेय सिर्फ घूंट ही होना चाहिए ना की पूरा ग्लास. यह शीतल पेय भी नहीं होना चाहिए. ये सामान्य ताप पर हो.
विष -
अगर भोजन के मध्य में या अंतमे ढेर सारा पानी पीया तो यह जठराग्नि को बुझा देता है. खाना पचता नहीं और आम में बदल जाता है.
पोषक पानी -
खाना खाने के कुछ घंटों बाद भरपूर पानी पीया जा सकता है. इस समय यह पोषण और बल प्रदान करता है.
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